The Hindu : Sukhdev Bainada
SUKHDEV BAINADA (TodabhiM)
सनातन धर्म

प्राचीन काल में भारतीय सनातन धर्म मेंगाणपतय, शैव वैष्णव,शाक्त और सौर नाम के पाँच सम्प्रदाय होते थे।गाणपतयगणेशकी वैष्णव विष्णु की, शैव शिव की और शाक्त शक्ति और सौर सूर्य की पूजा आराधना किया करते थे। पर यह मान्यता थी कि सब एक ही सत्य की व्याख्या हैं। यह न केवल ऋग्वेद परन्तु रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय ग्रन्थों में भी स्पष्ट रूप से कहा गया है। प्रत्येक सम्प्रदाय के समर्थक अपने देवता को दूसरे सम्प्रदायों के देवता से बड़ा समझते थे और इस कारण से उनमें वैमनस्य बना रहता था। एकता बनाए रखने के उद्देश्य से धर्मगुरूओं ने लोगों को यह शिक्षा देना आरम्भ किया कि सभी देवता समान हैं, विष्णु, शिव और शक्ति आदि देवी-देवता परस्पर एक दूसरे के भी भक्त हैं। उनकी इन शिक्षाओं से तीनों सम्प्रदायों में मेल हुआ और सनातन धर्म की उत्पत्ति हुई। सनातन धर्म में विष्णु, शिव और शक्ति को समान माना गया और तीनों ही सम्प्रदाय के समर्थक इस धर्म को मानने लगे। सनातन धर्म का सारा साहित्य वेद, पुराण, श्रुति, स्मृतियाँ,उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आदि संस्कृत भाषा में रचा गया है। कालान्तर में भारतवर्ष में मुसलमान शासन हो जाने के कारण देवभाषा संस्कृत का ह्रास हो गया तथा सनातन धर्म की अवनति होने लगी। इस स्थिति को सुधारने के लिये विद्वान संत तुलसीदास ने प्रचलित भाषा में धार्मिक साहित्य की रचना करके सनातन धर्म की रक्षा की। Hindu Yani Snataan Dhram Dunia ka sabse purana dharam h.Sab dharm isi me se tut kar alag hue hai aur har dhrmo k bhagwano ne Hindu Brahmno me jnm liya hai,Unhone Khud ki Puja Karwane k liya Aisa kiya.Jaise Guru Nanakdev,Mahatma Budh,Mahaveer Jain etc.,Sabhi ne,Sabhi ne Bhagwan Shiv ki puja se Shakti prapt kar Khud ko hi Bhagwan bna diya.Par Vinash Kaal me Sabse Pahle inhi Dhrmo ka Vinash hota h,Isliye Muslim,Christian,Boddh etc dhrmo ki Umar Jyada lambi nhi hai......
जब औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन को ईसाई, मुस्लिम आदि धर्मों के मानने वालों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिये जनगणना करने की आवश्यकता पड़ी तो सनातन शब्द से अपरिचित होने के कारण उन्होंने यहाँ के धर्म का नाम सनातन धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म रख दिया।
सनातन धर्म हिन्दू धर्म का वास्तविक नाम है।
[संपादित करें]परंपराएँ
हिंदू धर्म, अपनी धार्मिक सिद्धांतों, और परंपराओं के पालन बहुत विशिष्ट होते हैं और inextricably संस्कृति से जुड़ा हुआ है और भारत की जनसांख्यिकी. हिंदू धर्म में world के सबसे ethnicdfy विविध निकायों में से एक है कि एक धर्म हिंदू धर्म के रूप में वर्गीकृत मुश्किल है क्योंकि रूपरेखा, प्रतीक, नेताओं और संदर्भ की किताबें है कि एक विशिष्ट हिंदू धर्म के मामले में की पहचान नहीं कर रहे हैं विशिष्ट धर्म बनाना है। हिंदू शब्द एक तरह से एक के रूप में देखा जा सकता है।
बड़े जनजातियों और भारत के लिए स्वदेशी समुदायों के निकट संश्लेषण और हिंदू सभ्यता के गठन से जुड़ी हैं। [के लोगों [पूर्वी एशियाई]] उत्तर पूर्वी भारत और नेपाल के राज्यों में रहने वाले भी हिंदू सभ्यता का एक हिस्सा थे। आप्रवास और लोगों के निपटान [से [दक्षिण भारत में हिंदू धर्म की जड़ें, और बीच आदिवासी और स्वदेशी समुदायों के बस के रूप में प्राचीन और मौलिक धार्मिक और दार्शनिक प्रणाली की नींव को contributive है।
प्राचीन हिंदू राज्यों उठकर धर्म और [भर में फैल परंपराओं [दक्षिण पूर्व एशिया]], विशेष रूप थाईलैंड, नेपाल, बर्मा, मलेशिया, इंडोनेशिया, कंबोडिया [और क्या अब केंद्रीय है [वियतनाम]]। भारतीय जड़ों और परंपराओं से विशेष रूप से विभिन्न हिंदू धर्म का एक रूप [में अभ्यास [बाली]], इंडोनेशिया, जहां हिंदुओं की आबादी के 90% रूप है। भारतीय प्रवासियों हिंदू धर्म और हिंदू [संस्कृति को ले लिया है [दक्षिण अफ्रीका]], फिजी, मॉरीशस और अन्य देशों और हिंद महासागर, और [के देशों में [वेस्ट इंडीज]] और कैरेबियन के आसपास ।
[संपादित करें]हिंदू समारोह, उत्सव और तीर्थ
मुख्य लेख : हिन्दू त्यौहार
हिंदू धर्म भी धार्मिक अलग समय और जीवन की घटनाओं, और मौत के लिए अपने अनुयायियों द्वारा निष्पादित समारोह में बहुत विविधता है. हिंदुओं के प्रधान विनोद भी क्षेत्र से क्षेत्र में जो दीवाली, शिवरात्रि, रामनवमी, जन्माष्टमी,गणपति, दुर्गापूजा, होली, नवरात्री आदि शामिल हैं। भिन्न
कई हिंदू पवित्र धार्मिक स्थलों के लिए तीर्थ करने ([के रूप में जाना [तीर्थ और Kshetra |tirthas]])। हिंदू पवित्र मंदिर एस शामिल कैलाश पर्वत, अमरनाथ, वैष्णो देवी, रामेश्वरम और केदारनाथ। प्रमुख हिंदू पवित्र शहर में शामिल हैं वाराणासी(बनारस), काठमांडू (नेपाल), तिरुपति, हरिद्वार, नासिक, उज्जैन, द्वारका, पुरी, प्रयाग, मथुरा, Mayapur और अयोध्या।
देवी दुर्गा '[में पवित्र मंदिर s [वैष्णो]] हर साल हजारों श्रद्धालुओं के देवी को आकर्षित करती है। हिंदुओं की सालाना लाखों की सैकड़ों ऐसे [के रूप में पवित्र नदियों यात्रा [गंगा | गंगा]] ( "गंगा" संस्कृत में नदी) और उन्हें मंदिर के पास, धोने और खुद को स्नान के लिए अपने पापों को शुद्ध। कुंभ मेला (ग्रेट साफ) का सम्मेलन 10 को 20 million हिंदुओं के बीच पर इलाहाबाद (प्रयाग), उज्जैन, नासिक, के रूप में समय समय पर विभिन्न भागों का में ठहराया में पवित्र नदियों के किनारे हिंदू धर्म है पुरोहित नेतृत्व द्वारा भारत। सबसे प्रसिद्ध गंगा और यमुना [में के संगम पर है [उत्तर प्रदेश]], जो 'के रूप में जाना जाता है संगम ".
सनातन धर्म की गुत्थियों को देखते हुए इसे प्रायः कठिन और समझने में मुश्किल धर्म समझा जाता है। हालांकि, सच्चाई ऐसी नहीं है, फिर भी इसके इतने आयाम, इतने पहलू हैं कि लोगबाग इसे लेकर भ्रमित हो जाते हैं। सबसे बड़ा कारण इसका यह कि सनातन धर्म किसी एक दार्शनिक, मनीषा या ऋषि के विचारों की उपज नहीं है। न ही यह किसी ख़ास समय पैदा हुआ। यह तो अनादि काल से प्रवाहमान और विकासमान रहा। साथ ही यह केवल एक द्रष्टा, सिद्धांत या तर्क को भी वरीयता नहीं देता। कोई एक विचार ही सर्वश्रेष्ठ है, यह सनातन धर्म नहीं मानता। इसी वजह से इसमे कई सारे दार्शनिक सिद्धांत मिलते हैं। इसके खुलेपन की वजह से ही कई अलग-अलग नियम इस धर्म में हैं। इसकी यह नरमाई ही इस के पतन का कारण रही है, औ यही विशेषता इसे अधिक ग्राह्य और सूक्ष्म बनाती है। इसका मतलब यह है कि अधिक सरल दिमाग वाले इसे समझने में भूल कर सकते हैं। अधिक सूक्ष्म होने के साथ ही सनातन धर्म को समझने के कई चरण और प्रक्रियाएं हैं, जो इस सूक्ष्म सिद्धांत से पैदा होती हैं। हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि सरल-सहज मस्तिष्क वाले इसे समझ ही नहीं सकते। पूरी गहराई में जानने के लिए भले ही हमें गहन और गतिशील समझदारी विकसित पड़े, लेकिन सामान्य लोगों के लिए भी इसके सरल और सहज सिद्धांत हैं। सनातन धर्म कई बार भ्रमित करनेवाला लगता है और इसके कई कारण हैं। अगर बिना इसके गहन अध्ययन के आप इसका विश्लेषण करना चाहेंगे, तो कभी समझ नहीं पाएंगे। इसका कारण यह कि सनातन धर्म सीमित आयामों या पहलुओं वाला धर्म नहीं है। यह सचमुच ज्ञान का समुद्र है। इसे समझने के लिए इसमें गहरे उतरना ही होगा। सनातन धर्म के विविध आयामों को नहीं जान पाने की वजह से ही कई लोगों को लगता है कि सनातन धर्म के विविध मार्गदर्शक ग्रंथों में विरोधाभास हैं। इस विरोधाभास का जवाब इसीसे दिया जा सकता है कि ऐसा केवल सनातन धर्म में नहीं। कई बार तो विज्ञान में भी ऐसी बात आती है। जैसे, विज्ञान हमें बताता है कि शून्य तापमान पर पानी बर्फ बन जाता है। वही विज्ञान हमें यह भी बताता है कि पानी शून्य डिग्री से भी कम तापमान पर भी कुछ खास स्थितियों में अपने मूल स्वरूप में रह सकता है। इसका जो जवाब है, वही सनातन धर्म के संदर्भ में भी है। जैसे, विज्ञान के लिए दोनों ही तथ्य सही है, भले ही वह आपस में विरोधाभासी हों, और विज्ञान के नियमोंको झुठलाते हों। उसी तरह सनातन धर्म भी अपने खुलेपन की वजह से कई सारे विरोधी विचारों को ख़ुद में समेटे रहता है। परन्तु सनातनधर्म में जो तत्व है, उसे नकारा भी तो नही जा सकता। हम पहले भी कह चुके हैं-एकं सत्यं, बहुधा विप्रा वदंति-उसी तरह किसी एक सत्य के भी कई सारे पहलू हो सकते हैं। कुछ ग्रंथ यह कह सकते हैं कि ज्ञान ही परम तत्व तक पहुंचने का रास्ता है, कुछ ग्रंथ कह सकते हैं कि भक्ति ही उस परमात्मा तक पहुंचने का रास्ता है। सनातन धर्म में हर उस सत्य या तथ्य को जगह मिली है, जिनमें तनिक भी मूल्य और महत्व हो। इससे भ्रमित होने की ज़रूरत नहीं है। आप उसी रास्ते को अपनाएं जो आपके लिए सही और सहज हो। याद रखें कि एक रास्ता अगर आपके लिए सही है, तो दूसरे सब रास्ते या तथ्य ग़लत हैं, सनातन धर्म यह नहीं मानता। साथ ही, सनातन धर्म खुद को किसी दायरा या बंधन में नहीं बांधता है। ज़रूरी नहीं कि आप जन्म से ही सनातनी हैं। सनातन धर्म का ज्ञान जिस तरह किसी बंधन में नहीं बंधा है, उसी तरह सनातन धर्म खुद को किसी देश, भाषा या नस्ल के बंधन में नहीं बांधता। सच पूछिए तो युगों से लोग सनातन धर्म को अपना रहे हैं। सनातनधर्म के नियमों का यदि गहराई से अध्ययन किया जाए तो मन स्वयँ ही इसकी सचाई को मानने को तैयार हो जाता है। विज्ञान जिस तरह बिना ज्ञान के अधूरा है। सनातन धर्म भी बिना ज्ञान हानि कारक है। ज्ञान मनुष्य के आस-पास होता है। उसके भीतर होता है। इस का एक उदाहरण देखिये- हवन, यज्ञ आदि का शास्त्रों में कोई विधि विधान कहा गया है। कि इसे किस महूर्त में किस आसन पर बैठ कर किस प्रकार के भोजन का इस्तेमाल करते हुए करना चाहिए, इतना सा ज्ञान तो कुछ पेचीदा नही है। परन्तु इस ज्ञान के बिना किये गये हवन, यज्ञ हानि ही करेंगे, यह ज्ञान भी पेचीदा नही है। देखने सुनने में आता है कि अज्ञानी लोग प्रति दिन आर्यसमाज, मन्दिरों, घरों, में नित्य-नियम बनाकर हवन, यज्ञ आदि करते रहते हैं। जब अनिष्ट फल प्राप्त होता है, तब सनातन धर्म क़ी नरमाई का लाभ उठाते हुए सनातन धर्म का त्याग कर देते हैं, और इस पुरातन सनातन धर्म क़ी खामियाँ तलाशने लगते है जबकि सनातन धर्म अपने आप में सम्पूर्ण सत्य धर्म है।
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