भविष्य में सरकारी नोकर:- #RIP

भविष्य_में_सरकारी_नोकर:- #RIP
【कुछ साल पहले मैंने सुना था अमेरिका में फ़ेडरल सर्विस शौकिया लोग जॉइन करते है सुबह जॉइन की शाम को छोड़ दी 😢】
आज से मोटा मोटा 10-15 साल पहले पटवारी मामा हुआ करते थे ,तसीदार तो काका और कलेक्टर माई-बाप 
{{पटवारी से नकल लेने में महीनों लगते थे अब चंद मिनट या फिर एक दिन}}
{{ पहले कलेक्टर बोलते ही गांव के लोग प्राण त्यागने की हालत हो जाती थी ,अब नत्था भी अपनी बुलन्द आवाज के साथ रावण की तरह हँस सकता है । अब BP कलेक्टर का बढ़ता है }}
पर 2005 के बाद से सूचनाक्रांति ने इसा बदला की पेड़ पर लटकर/चढ़कर BSNL की SIM से एक बार नंबर डायल करना इसा लगता था कि #महीनों की मस्कत से मिली सिम का लेना सार्थक हो गया ओर अब मोक्ष पक्का है 😊😊
....>>>ओरकुट>>>चैट>>>ब्लॉग>>>yahoo चैट ओर ईमेल>>गूगल बाबा >>>फेसबुक>>>व्हाट्सapp
इन सब ने वह बदल दिया जो 1950 से 2005 तक आमआदमी के पास नही पहुचा । सरकारी मामा ओर दामाद अब नोकर बनने की तरफ है । ...10 साल में इतना बदला तो 2020 में देखते है सरकारी नोकर कही कुलु का नोकर न हो जाये !
>>>>>आज आप हम सब सरकारी नोकरी लगने पर बधाई देते है ,वह दिन दूर नही जब मातम में #RIP का इजहार कर रहे होगे** 😊😊
>>>>>बदलाव तो प्रकृति का नियम है बस उसकी पहुच आमजन तक पहुचने में देरी होती है क्योकि माध्यम होना जरूरी है ओर डिजिटल 【0 ,1】 इसका माध्यम बन गया है इसी लिये हमें बदलाव बहुत तेज लग रहे एवम मिल रहे है ।
{ सर्कुलर ,ऑर्डर्स जब व्हाट्सएप पर आ जाते है ,पहले प्रमोशन ओर ट्रांसफर के फैक्स तार आते थे}

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दहेज व्यंग कथा

#दहेजव्यंगकथा

कछु नही है रे पटेल , एक रूपया की भी तय नही है ज्यादातर लोग यही बोलते है , लेकिन फिर 10 देने पर लाडी इसलिए नही भेजते की 2 लाख कम दिये है । 
बडा अजीब है ये भी जो समाज के ठेकेदार दहेज रोकने के लिए बडी बडी मीटिंग करते है वो ही दहेज के चक्कर मे अपनी बहु छोड़ देते है । 
हाहाहाहा हाहाहाहा क्यो नही पोस्ट डालेंगे भाईसाहब फेसबुक पर की फलाणा गांव के लड़के ने एक रूपये मे की शादी । छोरा मास्टर , छौरी मास्टरणी । जिंदगी भर कमाकर देगी । क्या करेगा दहेज लेकर । 
साहब बहुत कम आदमी मिलेगा जिसने दिये हुए पैसे को बापस किया है या नही लिया है । हम तो जब माने 15 लाख से भरे थाल को बापस कर दे, की बियाई जमीन बिक जायेगी , जरूरत नही है , ।
खैर मजे बाली बात ये भी है घरवाले अक्सर बोलते है सभी के बोलते है पर शर्म से सभी कबूल ना करेंगे - की बेटा कछु भी लग जा , 5-7 लाख तो बेटो घर बेठे दे जायेगो । मतलब बच्चा भी दहेज और सुन्दर पढी लिखी छौरी के चक्कर मे ही पढ़ रहा है । 
गजब के नमूने है मिलणी कू भर ली, कन्यादान तो अलग से होगा , गेणो मे तो कछु ना लाऊ , तू तो मगंल सूत्र को अगुठी लिज्यौ । 
चाहे हत्या हो या आत्महत्या या घरेलू झगड़ा या कोई भी कारण , खबर ये आयेगी अखबार मे - दहेज प्रताड़ित ने दी जान । दहेज लोभी ने फलाणी को घर से बाहर निकाला । 
बैसे भई कभी कभी इस दहेज के चक्कर मे मासूम बारातियो की बाट लग जाती है क्योंकि धणी की स्पस्ट खेण है आपान कू तो 15 नगद चान्जै । तेरे जची इसी कर बारात की व्यवस्था । अब बेटा बाराती बण गिया भैराती । 
हाहाहाहा बिस्या बीच बाडा कू तो हमेशा ही दूसण मिल्यौ है , मजा मे बा ही रियो है देख भई या तो छौरा को डोकरो या रियो छौरी को डोकरो । दोनू धणी बतडालौ , जच जाय तो कर लिज्यौ , आपान कू दूसण मित दिज्यौ पाछै । 
कभी कभी आपसी दोनू जणा न की लडाई मे गलती सू , आदमी ने ज्यादा सी खह दी , लुगाई मर गी । तो बेटा लगाऔ दहेज को केस । माँ-बाप और बहणा भी जाऔ जेल । च्यौ क केस तो दहेज को ही लगेगौ , और सबपे । 
और आजकल तो मजा का चलन चल गया , सामने बाला भी जाणता है 1100 रूपये तो धर दिया थडा पे और 11 लाख घर बुलाकर अटेची मे गिणा दिया हाहाहाहा । हो गियो दहेज बंद । पटेल भी राजी , समाज का ठेकेदार भी और दहेज बिरोधी भी । 
बिस्या एक बात और है या दहेज को कोडो आपणा समाज मे ही कुनी सब जगह है । विहार , यूपी , तमिलनाडु , केरल , आन्ध्र, । साऊथ मे सोना और नोर्थ मे दोनो । 
जो ये थडा पर 1100 और चुपके से 11 लाख बाली स्किम बहुत पुरानी है ये पहले जनरल कास्ट बाले अपनाते थे आज भी जारी है बस हमने देर से पकडी ।

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आरक्षण और समाज

#आरक्षणऔरसमाज
अक्सर गांव शहरों मे बोला जाता है मीणा हो , रिजर्वेशन मिला हुआ है नौकरी तो लग ही जायेगी । ज्यादा तो नही बोलेगे क्योंकि तरह तरह की आत्माओं का निवास है आभासी दुनियाँ मे , । 
फिर भी ..,,,,.,,भारत मे 2% रोजगार ही सरकारी नौकरी मे है और 98% रोजगार प्राईवेट सेक्टर मे है तो महान ईष्यालुऔ या आपसे कहे , देश मे ठेकेदारी का पाठ पढाने बालो , ये 98% रोजगार मे कोनसा आरक्षण है । और हम हमारा हक संविधान के अनुसार ही तो ले रहे है , आप ही तो रोज डकराते हो , देश संविधान से चलेगा । 
खैर छोडो सब देश की ठेकेदारी हम क्यों करे, ये बताऔ मीणाऔ को ही मिला है क्या आरक्षण ।ये sc, obc क्या ताश खेलते है आरक्षण लेकर ।
मीणा रिस्क लेते है रिस्क । साल भर मेहनत मजदूरी करके जो बचता है सब पढाई मे , भैंस का दुध , घी बेचकर लगाऔ पढाई मे , यहाँ तक माँ के गहने और बाप की जमीन बेचकर पढते है मीणा । फिर जाकर जयपुर ,सबाईमाधौपुर, कोटा, अलवर , दौसा मे तुम्हारे कमरों का किराया चुकाते है । अरे हम जुआ खेलते है जनाब , चाहै खेती हो या पढाई , लग गये तो ठिक नही तो बेचो जमीन , और मौसम ठिक रहा तो पैदा हो गयी , नही हुई तो कटाऔ भैंस को कसाई पर । 
क्या है हमारे पास गाँव , मिट्टी , 8 घंटा बिजली , वो भी रोते रोते , टूटी सड़क , टूटे सरकारी स्कूल , । और आपके पास चमचमाते स्कूल , चमचमाती सड़क , पानी , 24 घंटे बिजली , पार्क , तुम्हारा मिडिया , तुम्हारा जज , तुम्हारी सरकार , तुम्हारे नेता । 
सब सुविधा तो है तुम्हारे पास । 
बच्चे हमारे भी बैठे बैठे कोस सकते है । लेकिन घर से 3000 किलोमीटर दूर गैगमेन की नौकरी कर लेते है । मानसिक तनाव , रेलवे की लापरवाही से कभी कभी जान से हाथ भी धो बेठते है । मंदिरों मे पुजारियो को सैलेरी कितनी मिलती है जनाब , कभी बता तो दिया करो । और ये तुम्हारे मिडिया मे बैठे हुए बिकाऊ पुरूष और एक किलो पाऊडर पोते महिला पत्रकार हमे बतायेगी , आरक्षण देश के लिए घातक है। कभी मिलों हमारी गाँव की माँ बहनो से शादी पर भी 10 रूपये की क्रिम नसीब नही होती मेडम पत्रकार । 
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हमारी माँ बहण ये नही जानती पेड या स्टेपनरी क्या होता है मासिक धर्म के समय खराब कपड़ा आज भी इस आधुनिक भारत मे यूज करती है । 
,और ये सच्चाई है समाज के करोड़ पति , और गरीबों का हक मारने बाले खून चूसाऔ ।
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काग्रेंस , बीजेपी का डर दिखाकर , की इनकी सरकार आने पर आरक्षण खत्म कर देगी वोट ले लेती है और अब तक किसी नेता को राष्ट्रीय लेवल पर ठोस निर्णय लेने बाला पद ना दे सकी । 
और बीजेपी के नागपुर गैंग और कुछ नेता आकर बोल देते है आरक्षण देश को खोखला कर रहा है , महाराज खोखला तो आपने कर रखा है धर्म , राम मंदिर , हिन्दू मुस्लिम करवाकर , तुम्हारे बाप ने दिया है की आरक्षण । कभी इंसाफ की भी तो बात कर लिया करो साहब । 
तत्कालीन भारत सरकार ने 1953 में काका कालेलकर आयोग की नियुक्ति की घोषणा की थी । इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर भारत सरकार ने अनुसूचित जनजाति(संशोधन) विधेयक 1956 लोकसभा में पेश किया जिसमें अन्य जातियों के साथ-साथ राजस्थान की मीणा जाति का नाम भी जनजाति की सूची में रखा गया। संसद ने इस विधेयक को यथावत पास कर दिया जिसको भारत के राष्ट्रपति ने 25/09/1956 को स्वीकृति दी थी । अब महाराज ये तो संविधान मे लिखित है । 
पहाड़ों की जिंदगी जिकर , कुछ जज्वा लेकर मैदान मे उतरे ही है की आप तो जलने लग गये । मतलब हम जिंदगी भर तुम्हारे चपरासी और कमाकर पेट भरने की खान मात्र ही बने रहते तो ठिक था । बहुत दुख देखे महाराज हमारे बढे बुजुर्गो ने , अब तो शांति से जी लेने दो । 
तुम्हारे शरीर से परफ्यूम की खुशबू आती है और हमारे माँ-बाप आज भी तीन दिन मे नहाते है , क्या बराबरी की बात करते हो । 
कभी आऔ आमने सामने डिवेट मे साहब , 
हो सकता है हम सरकारी मे पढे हो , ग्यान कम हो,लेकिन जवाब ऐसा देगे की शरीर और थूथरे पसीना पौछने के लिए रूमाल नही, तौलिया लाना पडेगा ।

मेघराज मीणा नरौली डांग भाईसाहब की कलम से.............

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नया सवेरा : सुखदेव मीणा बैनाड़ा

              नया सवेरा

(१)

जग में जो आता जाता है ।
यहाँ नहीं कोई टिक पाता है ।।
एक गए दूजा आता है ।
समय सदा चलता जाता है ।।

(२)
जैसे-जैसे दिन जाता है ।
नया पुराना हो जाता है ।।
बीता हुआ न कल आता है ।
वैसे तो कल, कल आता है ।।

(३)
जीवन में सुख दुःख आता है ।
रात गए ज्यों दिन आता है ।।
जो बीते सो सह जाता है ।
जग जीवन ऐसे जाता है ।।

(४)
मरने को सब जग जीता है ।
जीने को बिरला जीता है ।।
राम नाम रस जो पीता है ।
सच में वही जीवन जीता है ।।

(५)
सब चाहा कब मिल पाता है ।
मिलता जैसे मिल पाता है ।।
जो करता जैसा पाता है ।
किया कभी न मिट पाता है ।।

(६)
खोए बिनु न कुछ पाता है ।
जीवन भी खोकर पाता है ।।
सुख जग में सबको भाता है ।
दुःख में बस रोना आता है ।।

(७)
जीवन बस जीता जाता है ।
नया सवेरा कल आता है ।।
पता नहीं कल क्या लाता है ।
आशा में जीवन जाता है ।।

(८)
चहो वही न मिल पाता है ।
पल में बहुत बदल जाता है ।।
कुछ न कुछ देकर जाता है ।
नया सवेरा फिर आता है ।।
---------

सुखदेव मीणा +918561035806
गाँव-मकठोट , तहः-टोडाभीम
जिला-करौली , राजस्थान

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The Hindu : Sukhdev Bainada


SUKHDEV BAINADA                              (TodabhiM)

सनातन धर्म


                                         वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिये 'सनातन धर्म' नाम मिलता है। 'सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या 'हमेशा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म मूलत: भारतीय धर्म है, जो किसी ज़माने में पूरे वृहत्तर भारत (भारतीय उपमहाद्वीप) तक व्याप्त रहा है। विभिन्न कारणों से हुए भारी धर्मान्तरण के बाद भी विश्व के इस क्षेत्र की बहुसंख्यक आबादी इसी धर्म में आस्था रखती है। सिन्धु नद पार के वासियो को ईरानवासी हिन्दू कहते, जो 'स' का उच्चारण 'ह' करते थे। उनकी देखा-देखी अरब हमलावर भी तत्कालीन भारतवासियों को हिन्दू, और उनके धर्म को हिन्दू धर्म कहने लगे। भारत के अपने साहित्य में हिन्दू शब्द कोई १००० वर्ष पूर्व ही मिलता है, उसके पहले नहीं।
प्राचीन काल में भारतीय सनातन धर्म मेंगाणपतयशैव वैष्णव,शाक्त और सौर नाम के पाँच सम्प्रदाय होते थे।गाणपतयगणेशकी वैष्णव विष्णु की, शैव शिव की और शाक्त शक्ति और सौर सूर्य की पूजा आराधना किया करते थे। पर यह मान्यता थी कि सब एक ही सत्य की व्याख्या हैं। यह न केवल ऋग्वेद परन्तु रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय ग्रन्थों में भी स्पष्ट रूप से कहा गया है। प्रत्येक सम्प्रदाय के समर्थक अपने देवता को दूसरे सम्प्रदायों के देवता से बड़ा समझते थे और इस कारण से उनमें वैमनस्य बना रहता था। एकता बनाए रखने के उद्देश्य से धर्मगुरूओं ने लोगों को यह शिक्षा देना आरम्भ किया कि सभी देवता समान हैं, विष्णुशिव और शक्ति आदि देवी-देवता परस्पर एक दूसरे के भी भक्त हैं। उनकी इन शिक्षाओं से तीनों सम्प्रदायों में मेल हुआ और सनातन धर्म की उत्पत्ति हुई। सनातन धर्म में विष्णुशिव और शक्ति को समान माना गया और तीनों ही सम्प्रदाय के समर्थक इस धर्म को मानने लगे। सनातन धर्म का सारा साहित्य वेदपुराणश्रुतिस्मृतियाँ,उपनिषद्रामायणमहाभारतगीता आदि संस्कृत भाषा में रचा गया है। कालान्तर में भारतवर्ष में मुसलमान शासन हो जाने के कारण देवभाषा संस्कृत का ह्रास हो गया तथा सनातन धर्म की अवनति होने लगी। इस स्थिति को सुधारने के लिये विद्वान संत तुलसीदास ने प्रचलित भाषा में धार्मिक साहित्य की रचना करके सनातन धर्म की रक्षा की। Hindu Yani Snataan Dhram Dunia ka sabse purana dharam h.Sab dharm isi me se tut kar alag hue hai aur har dhrmo k bhagwano ne Hindu Brahmno me jnm liya hai,Unhone Khud ki Puja Karwane k liya Aisa kiya.Jaise Guru Nanakdev,Mahatma Budh,Mahaveer Jain etc.,Sabhi ne,Sabhi ne Bhagwan Shiv ki puja se Shakti prapt kar Khud ko hi Bhagwan bna diya.Par Vinash Kaal me Sabse Pahle inhi Dhrmo ka Vinash hota h,Isliye Muslim,Christian,Boddh etc dhrmo ki Umar Jyada lambi nhi hai......
जब औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन को ईसाईमुस्लिम आदि धर्मों के मानने वालों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिये जनगणना करने की आवश्यकता पड़ी तो सनातन शब्द से अपरिचित होने के कारण उन्होंने यहाँ के धर्म का नाम सनातन धर्म के स्थान पर हिंदू धर्म रख दिया।
सनातन धर्म हिन्दू धर्म का वास्तविक नाम है।

[संपादित करें]परंपराएँ

हिंदू धर्म, अपनी धार्मिक सिद्धांतों, और परंपराओं के पालन बहुत विशिष्ट होते हैं और inextricably संस्कृति से जुड़ा हुआ है और भारत की जनसांख्यिकी. हिंदू धर्म में world के सबसे ethnicdfy विविध निकायों में से एक है कि एक धर्म हिंदू धर्म के रूप में वर्गीकृत मुश्किल है क्योंकि रूपरेखा, प्रतीक, नेताओं और संदर्भ की किताबें है कि एक विशिष्ट हिंदू धर्म के मामले में की पहचान नहीं कर रहे हैं विशिष्ट धर्म बनाना है। हिंदू शब्द एक तरह से एक के रूप में देखा जा सकता है।
बड़े जनजातियों और भारत के लिए स्वदेशी समुदायों के निकट संश्लेषण और हिंदू सभ्यता के गठन से जुड़ी हैं। [के लोगों [पूर्वी एशियाई]] उत्तर पूर्वी भारत और नेपाल के राज्यों में रहने वाले भी हिंदू सभ्यता का एक हिस्सा थे। आप्रवास और लोगों के निपटान [से [दक्षिण भारत में हिंदू धर्म की जड़ें, और बीच आदिवासी और स्वदेशी समुदायों के बस के रूप में प्राचीन और मौलिक धार्मिक और दार्शनिक प्रणाली की नींव को contributive है।
प्राचीन हिंदू राज्यों उठकर धर्म और [भर में फैल परंपराओं [दक्षिण पूर्व एशिया]], विशेष रूप थाईलैंडनेपालबर्मामलेशियाइंडोनेशियाकंबोडिया [और क्या अब केंद्रीय है [वियतनाम]]। भारतीय जड़ों और परंपराओं से विशेष रूप से विभिन्न हिंदू धर्म का एक रूप [में अभ्यास [बाली]], इंडोनेशिया, जहां हिंदुओं की आबादी के 90% रूप है। भारतीय प्रवासियों हिंदू धर्म और हिंदू [संस्कृति को ले लिया है [दक्षिण अफ्रीका]], फिजी, मॉरीशस और अन्य देशों और हिंद महासागर, और [के देशों में [वेस्ट इंडीज]] और कैरेबियन के आसपास ।

[संपादित करें]हिंदू समारोह, उत्सव और तीर्थ

हिंदू धर्म भी धार्मिक अलग समय और जीवन की घटनाओं, और मौत के लिए अपने अनुयायियों द्वारा निष्पादित समारोह में बहुत विविधता है. हिंदुओं के प्रधान विनोद भी क्षेत्र से क्षेत्र में जो दीवालीशिवरात्रिरामनवमीजन्माष्टमी,गणपतिदुर्गापूजाहोलीनवरात्री आदि शामिल हैं। भिन्न
कई हिंदू पवित्र धार्मिक स्थलों के लिए तीर्थ करने ([के रूप में जाना [तीर्थ और Kshetra |tirthas]])। हिंदू पवित्र मंदिर एस शामिल कैलाश पर्वतअमरनाथवैष्णो देवीरामेश्वरम और केदारनाथ। प्रमुख हिंदू पवित्र शहर में शामिल हैं वाराणासी(बनारस), काठमांडू (नेपाल), तिरुपतिहरिद्वारनासिकउज्जैनद्वारकापुरीप्रयागमथुराMayapur और अयोध्या
देवी दुर्गा '[में पवित्र मंदिर s [वैष्णो]] हर साल हजारों श्रद्धालुओं के देवी को आकर्षित करती है। हिंदुओं की सालाना लाखों की सैकड़ों ऐसे [के रूप में पवित्र नदियों यात्रा [गंगा | गंगा]] ( "गंगा" संस्कृत में नदी) और उन्हें मंदिर के पास, धोने और खुद को स्नान के लिए अपने पापों को शुद्ध। कुंभ मेला (ग्रेट साफ) का सम्मेलन 10 को 20 million हिंदुओं के बीच पर इलाहाबाद (प्रयाग), उज्जैन, नासिक, के रूप में समय समय पर विभिन्न भागों का में ठहराया में पवित्र नदियों के किनारे हिंदू धर्म है पुरोहित नेतृत्व द्वारा भारत। सबसे प्रसिद्ध गंगा और यमुना [में के संगम पर है [उत्तर प्रदेश]], जो 'के रूप में जाना जाता है संगम ".

काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ मंदिर
सनातन धर्म की गुत्थियों को देखते हुए इसे प्रायः कठिन और समझने में मुश्किल धर्म समझा जाता है। हालांकि, सच्चाई ऐसी नहीं है, फिर भी इसके इतने आयाम, इतने पहलू हैं कि लोगबाग इसे लेकर भ्रमित हो जाते हैं। सबसे बड़ा कारण इसका यह कि सनातन धर्म किसी एक दार्शनिक, मनीषा या ऋषि के विचारों की उपज नहीं है। न ही यह किसी ख़ास समय पैदा हुआ। यह तो अनादि काल से प्रवाहमान और विकासमान रहा। साथ ही यह केवल एक द्रष्टा, सिद्धांत या तर्क को भी वरीयता नहीं देता। कोई एक विचार ही सर्वश्रेष्ठ है, यह सनातन धर्म नहीं मानता। इसी वजह से इसमे कई सारे दार्शनिक सिद्धांत मिलते हैं। इसके खुलेपन की वजह से ही कई अलग-अलग नियम इस धर्म में हैं। इसकी यह नरमाई ही इस के पतन का कारण रही है, औ यही विशेषता इसे अधिक ग्राह्य और सूक्ष्म बनाती है। इसका मतलब यह है कि अधिक सरल दिमाग वाले इसे समझने में भूल कर सकते हैं। अधिक सूक्ष्म होने के साथ ही सनातन धर्म को समझने के कई चरण और प्रक्रियाएं हैं, जो इस सूक्ष्म सिद्धांत से पैदा होती हैं। हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि सरल-सहज मस्तिष्क वाले इसे समझ ही नहीं सकते। पूरी गहराई में जानने के लिए भले ही हमें गहन और गतिशील समझदारी विकसित पड़े, लेकिन सामान्य लोगों के लिए भी इसके सरल और सहज सिद्धांत हैं। सनातन धर्म कई बार भ्रमित करनेवाला लगता है और इसके कई कारण हैं। अगर बिना इसके गहन अध्ययन के आप इसका विश्लेषण करना चाहेंगे, तो कभी समझ नहीं पाएंगे। इसका कारण यह कि सनातन धर्म सीमित आयामों या पहलुओं वाला धर्म नहीं है। यह सचमुच ज्ञान का समुद्र है। इसे समझने के लिए इसमें गहरे उतरना ही होगा। सनातन धर्म के विविध आयामों को नहीं जान पाने की वजह से ही कई लोगों को लगता है कि सनातन धर्म के विविध मार्गदर्शक ग्रंथों में विरोधाभास हैं। इस विरोधाभास का जवाब इसीसे दिया जा सकता है कि ऐसा केवल सनातन धर्म में नहीं। कई बार तो विज्ञान में भी ऐसी बात आती है। जैसे, विज्ञान हमें बताता है कि शून्य तापमान पर पानी बर्फ बन जाता है। वही विज्ञान हमें यह भी बताता है कि पानी शून्य डिग्री से भी कम तापमान पर भी कुछ खास स्थितियों में अपने मूल स्वरूप में रह सकता है। इसका जो जवाब है, वही सनातन धर्म के संदर्भ में भी है। जैसे, विज्ञान के लिए दोनों ही तथ्य सही है, भले ही वह आपस में विरोधाभासी हों, और विज्ञान के नियमोंको झुठलाते हों। उसी तरह सनातन धर्म भी अपने खुलेपन की वजह से कई सारे विरोधी विचारों को ख़ुद में समेटे रहता है। परन्तु सनातनधर्म में जो तत्व है, उसे नकारा भी तो नही जा सकता। हम पहले भी कह चुके हैं-एकं सत्यं, बहुधा विप्रा वदंति-उसी तरह किसी एक सत्य के भी कई सारे पहलू हो सकते हैं। कुछ ग्रंथ यह कह सकते हैं कि ज्ञान ही परम तत्व तक पहुंचने का रास्ता है, कुछ ग्रंथ कह सकते हैं कि भक्ति ही उस परमात्मा तक पहुंचने का रास्ता है। सनातन धर्म में हर उस सत्य या तथ्य को जगह मिली है, जिनमें तनिक भी मूल्य और महत्व हो। इससे भ्रमित होने की ज़रूरत नहीं है। आप उसी रास्ते को अपनाएं जो आपके लिए सही और सहज हो। याद रखें कि एक रास्ता अगर आपके लिए सही है, तो दूसरे सब रास्ते या तथ्य ग़लत हैं, सनातन धर्म यह नहीं मानता। साथ ही, सनातन धर्म खुद को किसी दायरा या बंधन में नहीं बांधता है। ज़रूरी नहीं कि आप जन्म से ही सनातनी हैं। सनातन धर्म का ज्ञान जिस तरह किसी बंधन में नहीं बंधा है, उसी तरह सनातन धर्म खुद को किसी देश, भाषा या नस्ल के बंधन में नहीं बांधता। सच पूछिए तो युगों से लोग सनातन धर्म को अपना रहे हैं। सनातनधर्म के नियमों का यदि गहराई से अध्ययन किया जाए तो मन स्वयँ ही इसकी सचाई को मानने को तैयार हो जाता है। विज्ञान जिस तरह बिना ज्ञान के अधूरा है। सनातन धर्म भी बिना ज्ञान हानि कारक है। ज्ञान मनुष्य के आस-पास होता है। उसके भीतर होता है। इस का एक उदाहरण देखिये- हवन, यज्ञ आदि का शास्त्रों में कोई विधि विधान कहा गया है। कि इसे किस महूर्त में किस आसन पर बैठ कर किस प्रकार के भोजन का इस्तेमाल करते हुए करना चाहिए, इतना सा ज्ञान तो कुछ पेचीदा नही है। परन्तु इस ज्ञान के बिना किये गये हवन, यज्ञ हानि ही करेंगे, यह ज्ञान भी पेचीदा नही है। देखने सुनने में आता है कि अज्ञानी लोग प्रति दिन आर्यसमाज, मन्दिरों, घरों, में नित्य-नियम बनाकर हवन, यज्ञ आदि करते रहते हैं। जब अनिष्ट फल प्राप्त होता है, तब सनातन धर्म क़ी नरमाई का लाभ उठाते हुए सनातन धर्म का त्याग कर देते हैं, और इस पुरातन सनातन धर्म क़ी खामियाँ तलाशने लगते है जबकि सनातन धर्म अपने आप में सम्पूर्ण सत्य धर्म है।

हिन्‍दुत्‍व अथवा हिन्‍दू धर्म
हिन्दुत्व को प्राचीन काल में सनातन धर्म कहा जाता था। हिन्दुओं के धर्म के मूल तत्त्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान आदि हैं जिनका शाश्वत महत्त्व है। अन्य प्रमुख धर्मों के उदय के पूर्व इन सिद्धान्तों को प्रतिपादित कर दिया गया था। इस प्रकार हिन्दुत्व सनातन धर्म के रूप में सभी धर्मों का मूलाधार है क्योंकि सभी धर्म-सिद्धान्तों के सार्वभौम आध्यात्मिक सत्य के विभिन्न पहलुओं का इसमें पहले से ही समावेश कर लिया गया था। मान्य ज्ञान जिसे विज्ञान कहा जाता है प्रत्येक वस्तु या विचार का गहन मूल्यांकन कर रहा है और इस प्रक्रिया में अनेक विश्वास, मत, आस्था और सिद्धान्त धराशायी हो रहे हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आघातों से हिन्दुत्व को भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसके मौलिक सिद्धान्तों का तार्किक आधार तथा शाश्वत प्रभाव है।
आर्य समाज जैसे कुछ संगठनों ने हिन्दुत्व को आर्य धर्म कहा है और वे चाहते हैं कि हिन्दुओं को आर्य कहा जाय। वस्तुत: 'आर्य' शब्द किसी प्रजाति का द्योतक नहीं है। इसका अर्थ केवल श्रेष्ठ है और बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य की व्याख्या करते समय भी यही अर्थ ग्रहण किया गया है। इस प्रकार आर्य धर्म का अर्थ उदात्त अथवा श्रेष्ठ समाज का धर्म ही होता है। प्राचीन भारत को आर्यावर्त भी कहा जाता था जिसका तात्पर्य श्रेष्ठ जनों के निवास की भूमि था। वस्तुत: प्राचीन संस्कृत और पालि ग्रन्थों में हिन्दू नाम कहीं भी नहीं मिलता। यह माना जाता है कि परस्य (ईरान) देश के निवासी 'सिन्धु' नदी को 'हिन्दु' कहते थे क्योंकि वे 'स' का उच्चारण 'ह' करते थे। धीरे-धीरे वे सिन्धु पार के निवासियों को हिन्दू कहने लगे। भारत से बाहर 'हिन्दू' शब्द का उल्लेख 'अवेस्ता' में मिलता है। विनोबा जी के अनुसार हिन्दू का मुख्य लक्षण उसकी अहिंसा-प्रियता है
हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित:।
एक अन्य श्लोक में कहा गया है
ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय:
गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक:।
ॐकार जिसका मूलमंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है, भारत ने जिसका प्रवर्तन किया है, तथा हिंसा की जो निन्दा करता है, वह हिन्दू है।
चीनी यात्री हुएनसाग् के समय में हिन्दू शब्द प्रचलित था। यह माना जा सकता है कि हिन्दू' शब्द इन्दु' जो चन्द्रमा का पर्यायवाची है से बना है। चीन में भी इन्दु' को इन्तु' कहा जाता है। भारतीय ज्योतिष में चन्द्रमा को बहुत महत्त्व देते हैं। राशि का निर्धारण चन्द्रमा के आधार पर ही होता है। चन्द्रमास के आधार पर तिथियों और पर्वों की गणना होती है। अत: चीन के लोग भारतीयों को 'इन्तु' या 'हिन्दु' कहने लगे। मुस्लिम आक्रमण के पूर्व ही 'हिन्दू' शब्द के प्रचलित होने से यह स्पष्ट है कि यह नाम मुसलमानों की देन नहीं है।
भारत भूमि में अनेक ऋषि, सन्त और द्रष्टा उत्पन्न हुए हैं। उनके द्वारा प्रकट किये गये विचार जीवन के सभी पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं। कभी उनके विचार एक दूसरे के पूरक होते हैं और कभी परस्पर विरोधी। हिन्दुत्व एक उद्विकासी व्यवस्था है जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता रही है। इसे समझने के लिए हम किसी एक ऋषि या द्रष्टा अथवा किसी एक पुस्तक पर निर्भर नहीं रह सकते। यहाँ विचारों, दृष्टिकोणों और मार्गों में विविधता है किन्तु नदियों की गति की तरह इनमें निरन्तरता है तथा समुद्र में मिलने की उत्कण्ठा की तरह आनन्द और मोक्ष का परम लक्ष्य है।
हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति अथवा जीवन दर्शन है जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को परम लक्ष्य मानकर व्यक्ति या समाज को नैतिक, भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के अवसर प्रदान करता है। हिन्दू समाज किसी एक भगवान की पूजा नहीं करता, किसी एक मत का अनुयायी नहीं हैं, किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रतिपादित या किसी एक पुस्तक में संकलित विचारों या मान्यताओं से बँधा हुआ नहीं है। वह किसी एक दार्शनिक विचारधारा को नहीं मानता, किसी एक प्रकार की मजहबी पूजा पद्धति या रीति-रिवाज को नहीं मानता। वह किसी मजहब या सम्प्रदाय की परम्पराओं की संतुष्टि नहीं करता है। आज हम जिस संस्कृति को हिन्दू संस्कृति के रूप में जानते हैं और जिसे भारतीय या भारतीय मूल के लोग सनातन धर्म या शाश्वत नियम कहते हैं वह उस मजहब से बड़ा सिद्धान्त है जिसे पश्चिम के लोग समझते हैं । कोई किसी भगवान में विश्वास करे या किसी ईश्वर में विश्वास नहीं करे फिर भी वह हिन्दू है। यह एक जीवन पद्धति है; यह मस्तिष्क की एक दशा है। हिन्दुत्व एक दर्शन है जो मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं के अतिरिक्त उसकी मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकता की भी पूर्ति करता है।

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HISTORY OF MEENA (मीणाओं का इतिहास ) by sukhdev bainada


                                                                        


SUKHDEV BAINADA (TODABHIM)
HISTORY OF MEENA
मीणा मुख्यतया भारत के राजस्थान राज्य में निवास करने वाली एक जाति]] है। मीणा जाति भारतवर्ष की प्राचीनतम जातियों में से मानी जाती है । वेद पुराणों के अनुसार मीणा जाति मत्स्य(मीन) भगवान की वंशज है। पुराणों के अनुसार चैत्र शुक्ला तृतीया को कृतमाला नदी के जल से मत्स्य भगवान प्रकट हुए थे। इस दिन को मीणा समाज जहां एक ओर मत्स्य जयन्ती के रूप में मनाया जाता है वहीं दूसरी ओर इसी दिन संम्पूर्ण राजस्थान में गणगौर कात्योहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। मीणा जाति का गणचिह्न मीन (मछली) था। मछली को संस्कृत में मत्स्य कहा जाता है। प्राचीनकाल में मीणा जाति के राजाओं के हाथ में वज्र तथा ध्वजाओं में मत्स्य का चिह्न अंकित होता था, इसी कारण से प्राचीनकाल में मीणा जाति को मत्स्य माना गया। प्राचीन ग्रंथों में मत्स्य जनपद का स्पष्ट उल्लेख है जिसकी राजधानी विराट नगर थी,जो अब जयपुर वैराठ है। इस मस्त्य जनपद में अलवर,भरतपुर एवं जयपुर के आस-पास का क्षेत्र शामिल था। आज भी मीणा लोग इसी क्षेत्र में अधिक संख्या में रहते हैं। मीणा जाति के भाटों(जागा) के अनुसार मीणा जाति में 12 पाल,32 तड़ एवं 5248 गौत्र हैं।मध्य प्रदेश के भी लगभग २३ जिलो मे मीणा समाज निबास करता है ।
मूलतः मीना एक सत्तारूढ़ [जाति]] थे, और मत्स्य, यानी, राजस्थान या मत्स्य संघ के शासक थे,लेकिन उनका पतन स्य्न्थिअन् साथ आत्मसात से शुरू हुआ और पूरा जब ब्रिटिश सरकार उन्हे "आपराधिक जाति" मे दाल दिया।.यह कार्रवाई, राजस्थान में राजपूत राज्य के साथ उनके गठबंधन के समर्थन मे लिया गया था।
मीणा राजा एम्बर (जयपुर) सहित राजस्थान के प्रमुख भागों के प्रारंभिक शासक थे।पुस्तक 'संस्कृति और भारत जातियों की एकता "RSMann द्वारा कहा गया है कि मीना, राजपूतों के समान एक क्षत्रिय जाति के रूप में मानी जाती है।प्राचीन समय में राजस्थान मे मीना वंश के रजाओ का शासन था। मीणा राज्य मछली (राज्य) कहा जाता था। संस्कृत में मत्स्य राज्य का ऋग्वेद में उल्लेख किया गया था. बाद में भील और मीना, (विदेशी लोगों) जो स्य्न्थिअन्, हेप्थलिते या अन्य मध्य एशियाई गुटों के साथ आये थे,मिश्रित हुए। मीना मुख्य रूप से मीन भग्वान और (शिव) कि पुजा करते है। मीनाओ मे कई अन्य हिंदू जति की तुलना में महिलाओं के लिए बेहतर अधिकार हैं। विधवाओं और तलाकशुदा का पुनर्विवाह एक आम बात है और अच्छी तरह से अपने समाज में स्वीकार कर लिया है। इस तरह के अभ्यास वैदिक सभ्यता का हिस्सा हैं। आक्रमण के वर्षों के दौरान,और १८६८ के भयंकर अकाल में,तबाह के तनाव के तहत कै समुह बने। एक परिणाम के रूप मे भूखे परिवारों को जाति और ईमानदारी का संदेह का परित्याग करने के लिए पशु चोरी और उन्हें खाने के लिए मजबूर होना परा।.

अनुक्रम

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वर्ग

मीणा जाति प्रमुख रूप से निम्न वर्गों में बंटी हुई है
  1. जमींदार या पुरानावासी मीणा : जमींदार या पुरानावासी मीणा वे हैं जो प्रायः खेती एवं पशुपालन का कार्य बर्षों से करते आ रहे हैं। ये लोग राजस्थान के सवाईमाधोपुर,करौली,दौसा व जयपुर जिले में सर्वाधिक हैं|
  2. चौकीदार या नयाबासी मीणा : चौकीदार या नयाबासी मीणा वे मीणा हैं जो अपनी स्वछंद प्रकृति के कारण चौकीदारी का कार्य करते थे। इनके पास जमींने नहीं थीं, इस कारण जहां इच्छा हुई वहीं बस गए। उक्त कारणों से इन्हें नयाबासी भी कहा जाता है। ये लोग सीकर, झुंझुनू, एवं जयपुर जिले में सर्वाधिक संख्या में हैं।
  3. प्रतिहार या पडिहार मीणा : इस वर्ग के मीणा टोंक, भीलवाड़ा, तथा बूंदी जिले में बहुतायत में पाये जाते हैं। प्रतिहार का शाब्दिक अर्थ उलट का प्रहार करना होता है। ये लोग छापामार युद्ध कौशल में चतुर थे इसलिये प्रतिहार कहलाये।
  4. रावत मीणा : रावत मीणा अजमेर, मारवाड़ में निवास करते हैं।
  5. भील मीणा : ये लोग सिरोही, उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर एवं चित्तोड़गढ़ जिले में प्रमुख रूप से निवास करते हैं।

मीणा जाति के प्रमुख राज्य निम्नलिखित थे

  1. खोहगंग का चांदा राजवंश
  2. मांच का सीहरा राजवंश
  3. गैटोर तथा झोटवाड़ा के नाढला राजवंश
  4. आमेर का सूसावत राजवंश
  5. नायला का राव बखो [beeko] देवड़वाल [द॓रवाल] राजवंश
  6. नहाण का गोमलाडू राजवंश
  7. रणथम्भौर का टाटू राजवंश
  8. नाढ़ला का राजवंश
  9. बूंदी का ऊसारा राजवंश
  10. मेवाड़ का मीणा राजवंश
  11. माथासुला ओर नरेठका ब्याड्वाल
  12. झान्कड़ी अंगारी (थानागाजी) का सौगन मीना राजवंश
प्रचीनकाल में मीणा जाति का राज्य राजस्थान में चारों ओर फ़ैला हुआ था|

मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख किले

  1. आमागढ़ का किला
  2. हथरोई का किला
  3. खोह का किला
  4. जमवारामगढ़ का किला

मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख बाबड़ियां

  1. भुली बाबड़ी ग्राम सरजोली
  2. मीन भग्वान बावदी,सरिस्का,अल्वर्
  3. पन्ना मीणा की बाबड़ी,आमेर
  4. खोहगंग की बाबड़ी,जयपुर

मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख मंदिर :

  1. दांतमाता का मंदिर, जमवारामगढ़- सीहरा मीणाओं की कुल देवी
  2. शिव मंदिर, नई का नाथ, बांसखो,जयपुर,नई का नाथ,mean bagwan the. bassi बांसखो,जयपुर
  3. मीन भग्वान मन्दिर्,बस्सि,जयपुर्
  4. बांकी माता का मंदिर,टोडा का महादेव,सेवड माता -ब्याडवाल मीणाओं का
  5. बाई का मंदिर, बड़ी चौपड़,जयपुर
  6. मीन भगवान का मंदिर, मलारना चौड़,सवाई माधोपुर (राजस्थान)
  7. मीन भगवान का भव्य मंदिर, चौथ का बरवाड़ा,सवाई माधोपुर (राजस्थान)
  8. मीन भगवान का मंदिर, खुर्रा,लालसोट, दौसा (राजस्थान)

      • वरदराज विष्णु को हीदा मीणा लाया था दक्षिण से
आमेर रोड पर परसराम द्वारा के पिछवाड़े की डूंगरी पर विराजमान वरदराज विष्णु की एतिहासिक मूर्ति को साहसी सैनिक हीदा मीणा दक्षिण के कांचीपुरम से लाया था। मूर्ति लाने पर मीणा सरदार हीदा के सम्‌मान में सवाई जयसिंह ने रामगंज चौपड़ से सूरजपोल बाजार के परकोटे में एक छोटी मोरी का नाम हीदा की मोरी रखा। उस मोरी को तोड़ अब चौड़ा मार्ग बना दिया लेकिन लोगों के बीच यह जगह हीदा की मोरी के नाम से मशहूर है। देवर्षि श्री कृष्णभट्ट ने ईश्वर विलास महाकाव्य में लिखा है, कि कलयुग के अंतिम अश्वमेध यज्ञ केलिए जयपुर आए वेदज्ञाता रामचन्द्र द्रविड़, सोमयज्ञ प्रमुखा व्यास शर्मा, मैसूर के हरिकृष्ण शर्मा, यज्ञकर व गुणकर आदि विद्वानों ने महाराजा को सलाह दी थी कि कांचीपुरम में आदिकालीन विरदराज विष्णु की मूर्ति के बिना यज्ञ नहीं हो सकता हैं। यह भी कहा गया कि द्वापर में धर्मराज युधिष्ठर इन्हीं विरदराज की पूजा करते था। जयसिंह ने कांचीपुरम के राजा से इस मूर्ति को मांगा लेकिन उन्होंने मना कर दिया। तब जयसिंह ने साहसी हीदा को कांचीपुरम से मूर्ति जयपुर लाने का काम सौंपा। हीदा ने कांचीपुरम में मंदिर के सेवक माधवन को विश्वास में लेकर मूर्ति लाने की योजना बना ली। कांचीपुरम में विरद विष्णु की रथयात्रा निकली तब हीदा ने सैनिकों के साथ यात्रा पर हमला बोला और विष्णु की मूर्ति जयपुर ले आया। इसके साथ आया माधवन बाद में माधवदास के नाम से मंदिर का महंत बना। अष्टधातु की बनी सवा फीट ऊंची विष्णु की मूर्ति के बाहर गण्शोजी व शिव पार्वती विराजमान हैं। सार संभाल के बिना खन्डहर में बदल रहे मंदिर में महाराजा को दर्शन का अधिकार था। अन्य लोगों को महाराजा की इजाजत से ही दर्शन होते थै। महंत माधवदास को भोग पेटे सालाना 299 रुपए व डूंगरी से जुड़ी 47 बीघा 3 बिस्वा भूमि का पट्टा दिया गया । महंत पं. जयश्रीकृष्ण शर्मा के मुताबिक उनके पुरखा को 341 बीघा भूमि मुरलीपुरा में दी थी जहां आज विधाधर नगर बसा है। अन्त्या की ढाणी में 191 बीघा 14 बिस्वा भूमि पर इंडियन आयल के गोदाम बन गए।
नोट:- मीणा जाति के इतिहास की विस्तॄत जानकारी हेतु लेखक श्री लक्ष्मीनारायण झरवाल की पुस्तक "मीणा जाति और स्वतंत्रता का इतिहास" अवश्य पढ़े।

मध्ययुगीन इतिहास
प्राचहिन समय मे मीणा राजा आलन सिंह ने,एक असहाय राजपूत माँ और उसके बच्चे को उसके दायरे में शरण दि। बाद में, मीणा राजा ने बच्चे, ढोलाराय को दिल्ली भेजा,मीणा राज्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए। राजपूत ने इस्एहसान के लिए आभार मे राजपूत सणयन्त्रकारिओ के साथ आया और दीवाली पर निहत्थे मीनाओ कि लाशे बिछा दि,जब वे पित्र तर्पन रस्में कर रहे थे।मीनाओ को उस् समय निहत्था होना होता था। जलाशयों को"जो मीनाऔ के मृत शरीर के साथ भर गये। "[Tod.II.281] और इस प्रकार कछवाहा राजपूतों ने खोगओन्ग पर विजय प्राप्त की थी,सबसे कायर हर्कत और राजस्थान के इतिहास में शर्मनाक।
एम्बर के कछवाहा राजपूत शासक भारमल हमेशा नह्न मीना राज्य पर हमला करता था, लेकिन बहादुर बड़ा मीणा के खिलाफ सफल नहीं हो सका। अकबर ने राव बड़ा मीना को कहा था,अपनी बेटी कि शादी उससे करने के लिए। बाद में भारमल ने अपनी बेटी जोधा की शादी अकबर से कर दि। तब अकबर और भारमल की संयुक्त सेना ने बड़ा हमला किया और मीना राज्य को नस्त कर दिया। मीनाओ का खजाना अकबर और भारमल के बीच साझा किया गया था। भारमल ने एम्बर के पास जयगढ़ किले में खजाना रखा ।
कुछ अन्य तथ्य
कर्नल जेम्स- टॉड के अनुसार कुम्भलमेर से अजमेर तक की पर्वतीय श्रृंखला के अरावली अंश परिक्षेत्र को मेरवाड़ा कहते है । मेर+ वाड़ा अर्थात मेरों का रहने का स्थान । कतिपय इतिहासकारों की राय है कि " मेर " शब्द से मेरवाड़ा बना है । यहां सवाल खड़ा होता है कि क्या मेर ही रावत है । कई इतिहासकारो का कहना है किसी समय यहां विभिन्न समुदायो के समीकरण से बनी 'रावत' समुदाय का बाहुल्य रहा है जो आज भी है । कहा यह भी जाता है कि यह समुदाय परिस्थितियों और समय के थपेड़ों से संघर्ष करती कतिपय झुंझारू समुदायों से बना एक समीकरण है । सुरेन्द्र अंचल अजमेर का मानना है कि रावतों का एक बड़ा वर्ग मीणा है या यो कह लें कि मीणा का एक बड़ा वर्ग रावतों मे है । लेकिन रावत समाज में तीन वर्ग पाये जाते है -- 1. रावत भील 2. रावत मीणा और 3. रावत राजपूत । रावत और राजपूतो में परस्पर विवाह सम्बन्ध के उदाहरण मुश्किल से हि मिल पाए । जबकि रावतों और मीणाओ के विवाह होने के अनेक उदाहरण आज भी है । श्री प्रकाश चन्द्र मेहता ने अपनी पुस्तक " आदिवासी संस्कृति व प्रथाएं के पृष्ठ 201 पर लिखा है कि मेवात मे मेव मीणा व मेरवाड़ा में मेर मीणाओं का वर्चस्व था।
महाभारत के काल का मत्स्य संघ की प्रशासनिक व्यवस्था लौकतान्त्रिक थी जो मौर्यकाल में छिन्न- भिन्न हो गयी और इनके छोटे-छोटे गण ही आटविक (मेवासा ) राज्य बन गये । चन्द्रगुप्त मोर्य के पिता इनमे से ही थे । समुद्रगुप्त की इलाहाबाद की प्रशस्ति मे आ...टविक ( मेवासे ) को विजित करने का उल्लेख मिलता है राजस्थान व गुजरात के आटविक राज्य मीना और भीलो के ही थे इस प्रकार वर्तमान ढूंढाड़ प्रदेश के मीना राज्य इसी प्रकार के विकसित आटविक राज्य थे ।
वर्तमान हनुमानगढ़ के सुनाम कस्बे में मीनाओं के आबाद होने का उल्लेख आया है कि सुल्तान मोहम्मद तुगलक ने सुनाम व समाना के विद्रोही जाट व मीनाओ के संगठन ' मण्डल ' को नष्ट करके मुखियाओ को दिल्ली ले जाकर मुसलमान बना दिया ( E.H.I, इलियट भाग- 3, पार्ट- 1 पेज 245 ) इसी पुस्तक में अबोहर में मीनाओ के होने का उल्लेख है (पे 275 बही) इससे स्पष्ट है कि मीना प्राचीनकाल से सरस्वती के अपत्यकाओ में गंगा नगर हनुमानगढ़ एवं अबोहर- फाजिल्का मे आबाद थे ।

रावत एक उपाधि थी जो महान वीर योध्दाओ को मिलती थी वे एक तरह से स्वतंत्र शासक होते थे यह उपाधि मीणा, भील व अन्य को भी मिली थी मेर मेरातो को भी यह उपाधिया मिली थी जो सम्मान सूचक मानी जाती थी मुस्लिम आक्रमणो के समय इनमे से काफी को मुस्लिम बना...या गया अतः मेर मेरात मेहर मुसमानो मे भी है ॥ 17 जनवरी 1917 में मेरात और रावत सरदारो की राजगढ़ ( अजमेर ) में महाराजा उम्मेद सिह शाहपूरा भीलवाड़ा और श्री गोपाल सिह खरवा की सभा मेँ सभी लोगो ने मेर मेरात मेहर की जगह रावत नाम धारण किया । इसके प्रमाण के रूप में 1891 से 1921 तक के जनसंख्या आकड़े देखे जा सकते है 31 वर्षो मे मेरो की संख्या में 72% की कमी आई है वही रावतो की संख्या में 72% की बढोत्तर हुई है । गिरावट का कारण मेरो का रावत नाम धारण कर लेना है ।
सिन्धुघाटी के प्राचीनतम निवासी मीणाओ का अपनी शाखा मेर, महर के निकट सम्बन्ध पर प्रकाश डालते हुए कहा जा सकता है कि -- सौराष्ट्र (गुजरात ) के पश्चिमी काठियावाड़ के जेठवा राजवंश का राजचिन्ह मछली के तौर पर अनेक पूजा स्थल " भूमिलिका " पर आज भी देखा जा सकता है इतिहासकार जेठवा लोगो को मेर( महर,रावत) समुदाय का माना जाता है जेठवा मेरों की एक राजवंशीय शाखा थी जिसके हाथ में राजसत्ता होती थी (I.A 20 1886 पेज नः 361) कर्नल टॉड ने मेरों को मीना समुदाय का एक भाग माना है (AAR 1830 VOL- 1) आज भी पोरबन्दर काठियावाड़ के महर समाज के लोग उक्त प्राचीन राजवंश के वंशज मानते है अतः हो ना हो गुजरात का महर समाज भी मीणा समाज का ही हिस्सा है । फादर हैरास एवं सेठना ने सुमेरियन शहरों में सभ्यता का प्रका फैलाने वाले सैन्धव प्रदेश के मीना लोगो को मानते है । इस प्राचीन आदिम निवासियों की सामुद्रिक दक्षता देखकर मछलि ध्वजधारी लोगों को नवांगुतक द्रविड़ो ने मीना या मीन नाम दिया मीलनू नाम से मेलुहा का समीकरण उचित जान पड़ता है मि स्टीफन ने गुजरात के कच्छ के मालिया को मीनाओ से सम्बन्धीत बताया है दूसरी ओर गुजरात के महर भी वहां से सम्बन्ध जोड़ते है । कुछ महर समाज के लोग अपने आपको हिमालय का मूल मानते है उसका सम्बन्ध भी मीनाओ से है हिमाचल में मेन(मीना) लोगो का राज्य था । स्कन्द में शिव को मीनाओ का राजा मीनेश कहा गया है । हैरास सिन्धुघाटी लिपी को प्रोटो द्रविड़ियन माना है उनके अनुसार भारत का नाम मौहनजोदड़ो के समय सिद था इस सिद देश के चार भाग थे जिनमें एक मीनाद अर्थात मत्स्य देश था । फाद हैरास ने एक मोहर पर मीना जाती का नाम भी खोज निकाला । उनके अनुसार मोहनजोदड़ो में राजतंत्र व्यवस्था थी । एक राजा का नाम " मीना " भी मुहर पर फादर हैरास द्वारा पढ़ा गया ( डॉ॰ करमाकर पेज न॰ 6) अतः कहा जा सकता है कि मीना जाति का इतिहास बहुत प्राचीन है इस विशाल समुदाय ने देश के विशाल क्षेत्र पर शासन किया और इससे कई जातियो की उत्पत्ती हुई और इस समुदाय के अनेक टूकड़े हुए जो किसी न किसी नाम से आज भी मौजुद है ।
आज की तारीख में 10-11 हजार मीणा लोग फौज में है बुदी का उमर गांव पूरे देश मे एक अकेला मीणो का गांव है जिसमें 7000 की जनसंख्या मे से 2500 फौजी है टोंक बुन्दी जालौर सिरोहि मे से मीणा लोग बड़ी संख्या मे फौज मे है। उमर गांव के लोगो ने प्रथम व द्वीतिय विश्व युध्द लड़कर शहीदहुए थे शिवगंज के नाथा व राजा राम मीणा को उनकी वीरता पर उस समय का परमवीर चक्र जिसे विक्टोरिया चक्र कहते थे मिला था जो उनके वंशजो के पास है । देश आजाद हुआ तब तीन मीणा बटालियने थी पर दूर्भावनावश खत्म कर दी गई थी
तूंगा (बस्सी) के पास जयपुर नरेश प्रतापसिंह और माधजी सिन्धिया मराठा के बीच 1787 मे जो स्मरणिय युध्द हुआ उसमें प्रमुख भूमिका मीणो की रही जिसमे मराठे इतिहास मे पहली बार जयपुर के राजाओ से प्राजित हुए थे वो भी मीणाओ के कारण इस युध्द में राव चतुर और पेमाजी की वीरता प्रशंसनीय रही । उन्होने चार हजार मराठो को परास्त कर मीणाओ ने अपना नाम अमर कर दिया । तूँगा के पास अजित खेड़ा पर जयराम का बास के वीरो ने मराठो को हराया इसके बदले जयराम का बास की जमीन व जयपुर खजाने मे पद दिया गया ।

मीणा समुदाय में उल्‍लेखनीय व्‍यक्ति

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